1918 में जब वो अहमदाबाद में करखाना मज़दूरी की लड़ाई में शरीक हुए तो उन्होंन देखा कि उनकी पगड़ी में जितने कपड़े लगते है, उसमें 'कम से कम चार लोगों का तन ढका जा सकता है उन्होंने उस वक्त से पगड़ी पहनना छोड़ दिया था.
31 अगस्त 1920 को खेड़ा में किसानों के सत्याग्रह.....

अपना काम निकालने के लिए, संचालकों की इच्छा से, पहले हेस्टिंग्स ने ही नन्दकुमार को बढ़ावा दिया था, पर मतलब सिद्ध हो जाने के बाद से वह उसका विरोधी हो गया था। कौंसिल में हेस्टिंग्ज़ के विरोधी दल को प्रबल देखकर नन्दकुमार ने भी बदला लेना निश्चित किया। कौंसिल से उसने हेस्टिंग्ज़ की कई एक शिकायतें कीं। इन शिकायतों में मुख्य बात यह थी कि हेस्टिंग्ज़ ने मुन्नी बेगम से साढ़े तीन लाख रुपया घूस में लिया है, और 14 लाख रुपया मुहम्मद रिज़ाखाँ तथा शिताब राय से लेकर उनको अदालत से छुड़वा दिया है। इन अपराधों को सिद्ध करने के लिए कौंसिल की एक बैठक में नन्दकुमार बुलाया गया ।
हेस्टिंग्ज़ गवर्नर जनरल और कौंसिल का सभापति था। वह इस अपमान को न सह सका और बारवेल के साथ कौंसिल से उठकर चला गया। बाकी मेम्बरों ने की सब बातें सुनकर हेस्टिंग्ज़ को दोषी ठहराया और सब काग़ज़ात कम्पनी के वकील को देकर हेस्टिंग्ज़ से कुल रुपया वापस लेने की आज्ञा दे दी। हेस्टिंग्ज़ ने डेढ़ लाख रुपया मुन्नी बेगम से लिया था, यह बात ठीक है। इसको उसके समर्थक सर जेम्स स्टिफन ने भी उचित नहीं माना है।¹.... इस तरह नन्दकुमार की शिकायतें निराधार न थीं। इधर हेस्टिंग्ज़ और बारवेल ने सुप्रीम कोर्ट में नन्दकुमार तथा उसके कुछ साथियों पर, दोनों के विरुद्ध, षड्यंत्र रचने का अभियोग चलाया। सुप्रीम कोर्ट ने केवल नन्दकुमार को बारबेल के विरुद्ध दोषी ठहराया। इसी अवसर पर मोहन प्रसाद नाम के एक व्यक्ति ने नन्दकुमार पर जालसाज़ी का मुकदमा चलाया ।
कहा जाता है कि किसी दीवानी के मामले में नन्दकुमार ने एक जाली दस्ता-वेज़ बनाई थी।...अदालत की सहायता के लिए 12 अँगरेज़ों की जुरी बनाई गई, जो एक सप्ताह तक मुकदमे को सुनती रही। .....अन्त में अदालत ने नन्द-कुमार को दोषी पाया और उन दिनों के कानून के अनुसार उसको फाँसी देने की आज्ञा दी ।.नन्दकुमार बड़े धैर्य और साहस के साथ फांसी पर चढ़ा।²..
1- जेम्स स्टिफन, दि स्टोरी ऑफ नन्दकुमार, जि० 1। हेस्टिग्ज़ का कहना है कि यह रकम भत्ते की थी, जो मुर्शिदाबाद जाने पर गवर्नरों को नवाब के खजाने से मिला करती थी और हिसाब में दर्ज रहती थी ।
2- कौंसिल के नाम अपने अन्तिम पत्र में नन्दकुमार का कहना था कि मै अब मरने जा रहा हूँ। इस लोक के लिए में परलोक को न बिगाडूंगा। मैं सत्य कहता हूँ कि जालसाज़ी के मामले में में निर्दोष हूँ। केवल बदला लेने के लिए यह मुकदमा मुझ पर चलाया गया है। ( स्त्रोत -फारेस्ट, सेलेक्शस, जि० 1, पृष्ठ - 130-31।)
~ 14 Jul, 2024