अपना काम निकालने के लिए, संचालकों की इच्छा से, पहले हेस्टिंग्स ने ही नन्दकुमार को बढ़ावा दिया था, पर मतलब सिद्ध हो जाने के बाद से वह उसका विरोधी हो गया था। कौंसिल में हेस्टिंग्ज़ के विरोधी दल को प्रबल देखकर नन्दकुमार ने भी बदला लेना निश्चित किया। कौंसिल से.....

1918 में जब वो अहमदाबाद में करखाना मज़दूरी की लड़ाई में शरीक हुए तो उन्होंन देखा कि उनकी पगड़ी में जितने कपड़े लगते है, उसमें 'कम से कम चार लोगों का तन ढका जा सकता है उन्होंने उस वक्त से पगड़ी पहनना छोड़ दिया था.
31 अगस्त 1920 को खेड़ा में किसानों के सत्याग्रह के दौरान गांधी जी ने खादी को लेकर प्रतिज्ञा ली ताकि किसानों को कपास की खेती के लिए मजबूर ना किया जा सके, मैनचेस्टर के मिलों में कपास पहुंचाने के लिए किसानों को इसकी खेती के लिए मजबूर किया जाता था. उन्होंने प्रण लेते हुए कहा था, "आज के बाद से मैं ज़िंदगी भर हाथ से बनाए हुए खादी के कपड़ों का इस्तेमाल करूंगा."
गांधीजी कहते हैं, "मैंने इस तर्क के पीछे की सच्चाई को महसूस किया. मेरे पास बनियान, टोपी और नीचे तक धोती थी. ये पहनावा अधूरी सच्चाई बयां करती थी जहां लाखों लोग निर्वस्त्र रहने के लिए मजबूर थे. चार इंच की लंगोट के लिए जद्दोजहद करने वाले लोगों की नंगी पिंडलियां कठोर सच्चाई बयां कर रही थी. मैं उन्हें क्या जवाब दे सकता था जब तक कि मैं खुद उनकी पंक्ति में आकर नहीं खड़ा हो सकता हूं तो. मदुरई में हुई सभा के बाद अगली सुबह से कपड़े छोड़कर मैंने खुद को उनके साथ खड़ा किया."
छोटी सी धोती और शॉल विदेशी कपड़ों के बहिष्कार के लिए हो रहे सत्याग्रह का प्रतीक बन गया.
इसने ग़रीबों के साथ गांधीजी की एकजुटता के साथ-साथ यह भी दिखाया कि सम्राज्यवाद ने कैसे भारत को कंगाल बना दिया था. चंपारण में हुए पहले सत्याग्रह के तीस सालों के बाद भारत आख़िरकार 1947 में आज़ाद हुआ. यह दो सौ सालों की गुलामी का अंत था.
~ 13 Jul, 2024